Who am i? मैं कौन हूँ! | | What is Difference "I & MY" | Searchofall

Who are You? आप कौन हैं? ऐसा प्रश्न पूछने पर आपके जवाब मे सबसे पहले स्वयं का नाम याद आता है। हम यह नहीं जानते है और  ना ही कभी जानने का प्रयास किया। वास्तव मे हम कभी कोशिश ही नहीं किए अपने आपको समझने की। इस भागदौड़ भरी जिन्दगी मे हर कोई पैसा कमाने की लत औऱ अपनी जरूरते पुरी करने के चक्कर मे अपने आपको भूल गया है। कभी यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि वास्तव मे ‛मैं’ कौन हूँ! 24 घंटे मे सिर्फ 1घंटा समय स्वयं को जानने मे लगाए। सुबह या शाम को ध्यान (Meditation) करें।

अगर आप नहीं जानते तो कोई बात नहीं है। आज के इस Blog Post मे हम इन्हीं सभी सवालों के बारे जानेंगे कि  वास्तव मे (''मैं कौन हूँ") यह पोस्ट हमने अपने अनुभवो के आधार पर आपके लिए लिखा हूँ।  और इस पोस्ट को पूरा जरूर पढे औऱ इसको पढने से आपको क्या ज्ञान प्राप्त होता है हमें कमेंट (Comment) करके जरूर बताए।

Who am i? मैं कौन हूँ! | | What is Difference "I & MY" | Searchofall

‘मैं’ कौन हूँ? क्यों भिन्न हैं आप अपने नाम और ‘खुद’ से। 

गुरु जी : क्या नाम है आपका? 
प्रश्रकर्ता : मेरा नाम चंदूभाई है। 
गुरु जी : वाक़ई आप चंदूभाई हैं?
प्रश्रकर्ता : जी हाँ। 
गुरु जी : चंदूभाई तो आपका नाम है। क्या आप ‘स्वयं’ चंदूभाई हो या आपका नाम चंदूभाई है? 

प्रश्रकर्ता : वह तो नाम है। 
गुरु जी : हाँ, तो फिर ‘आप’ कौन? यदि ‘चंदूभाई’ आपका नाम है तो ‘आप’ कौन हो? आपका ‘नाम’ और ‘आप’ अलग नहीं हैं? अगर ‘आप’ नाम से अलग हो तो ‘आप’(स्वयं) कौन हो? यह बात आपको समझ में आती है न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? ‘यह मेरा चश्मा’ कहने पर तो चश्मा और हम अलग हुए? उसी प्रकार क्या अब ऐसा नहीं लगता कि आप(स्वयं) नाम से अलग हो? जैसे कि दुकान का नाम रखें ‘जनरल टे्डर्स’, तो वह कोई गुनाह नहीं है। 

लेकिन अगर उसके सेठ से हम कहें कि ‘ऐ जनरल ट्रेडर्स, यहाँ आ।’ तो सेठ क्या कहेंगे कि ‘मेरा नाम तो जयंतीलाल है और जनरल टे्डर्स तो मेरी दुकान का नाम है।’ अर्थात दुकान का नाम अलग और सेठ उससे अलग, माल अलग, सब अलग-अलग है? आपको क्या लगता है? 

प्रश्रकर्ता : सही है। 

गुरु जी : लेकिन यहाँ तो, ‘नहीं, मैं ही चंदूभाई हूँ’ ऐसा कहेंगे। अर्थात दुकान का बोर्ड भी मैं, और सेठ भी मैं! आप चंदूभाई हो, वह तो पहचानने का साधन है। असल मे? वह आत्मस्वरूप नहीं है ऐसा भी नहीं है कि आप चंदूभाई बिल्कुल नहीं हो। आप हो चंदूभाई, मगर ‘by relative view point’ (व्यावहारिक दृष्टि) से You are चंदूभाई, is करेक्ट।

प्रश्रकर्ता : मैं तो आत्मा हूँ, लेकिन नाम चंदूभाई है। 
गुरु जी : हाँ, लेकिन अभी ‘चंदूभाई’ को कोई गाली दे तो आप पर असर होगा या नहीं?

प्रश्रकर्ता : असर तो होगा ही।
गुरु जी : तब तो आप ‘चंदूभाई’ हो, ‘आत्मा’ नहीं। आत्मा होते तो आप पर असर नहीं होता, और असर होता है, इसलिए आप चंदूभाई ही हो। चंदूभाई के नाम से कोई गालियाँ दे तो आप उसे पकड़ लेते हो। 

चंदूभाई का नाम लेकर कोई उल्टा-सीधा कहे तो आप दीवार से कान लगाकर सुनते हो। हम कहें कि, ‘भाई, दीवार आपसे क्या कह रही है?’ तब कहते हो, ‘नहीं, दीवार नहीं, अंदर मेरी बात चल रही है। वह सुन रहा हूँ।’ किसकी बात चल रही है ? तब कहते हो, ‘चंदूभाई की।’ अरे, लेकिन आप चंदूभाई नहीं हो। यदि आप आत्मा हो तो चंदूभाई की बात अपने ऊपर नहीं लेते। 

प्रश्रकर्ता : वास्तव में तो ‘मैं आत्मा ही हूँ’?  

गुरु जी : अभी आप आत्मा हुए नहीं हो? चंदूभाई ही हो? ‘मैं चंदूभाई हूँ’ यह आरोपित भाव है। 

मैं चंदूभाई ही हूँ’, ऐसी मान्यता घर पर की गई है, यह रोंग मान्यता है। मान्यता - रोंग, राइट कितनी सारी रोंग धारणा है। ‘मैं चंदूभाई हूँ’ यह मान्यता, यह धारणा तो आपकी, रात को नींद में भी नहीं जाती ! फिर लोग हमारी शादी करवा के हमसे कहते हैं कि ,‘तू तो इस स्त्री का पति है।’ इसलिए हमने फिर पतिपना मान लिया। उसके बाद ‘मैं इसका पति हूँ, पति हूँ’ करते रहे। 

कोई सदा के लिए पति रहता है क्या? डाइवोर्स होने के बाद दूसरे दिन उसका पति रहेगा क्या? अर्थात ये सारी रोंग धारणा बैठ गई हैं। अत: ‘मैं चंदूभाई हूँ’ वह रोंग धारणा है। फिर ‘इस स्त्री का पति हूँ’ वह दूसरी रोंग धारणा। ‘मैं वैष्णव हूँ’ वह तीसरी रोंग धारणा। ‘मैं वकील हूँ’ वह चौथी रोंग धारणा। ‘मैं इस लड़के का फादर हूँ’ वह पाँचवी रोंग धारणा। 




‘इसका मामा हूँ’, वह छट्ठी रोंग धारणा। ‘मैं गोरा हूँ’ वह सातवीं रोंग धारणा। ‘मैं पैंतालीस साल का हूँ’, वह आठवीं रोंग धारणा। ‘मैं इसका पार्टनर हूँ’ यह भी रोंग धारणा। आप ऐसा कहो कि ‘मैं इन्कम टैक्स पेयर हूँ’ तो वह भी रोंग धारणा है। ऐसी कितनी रोंग धारणा बैठ गई होंगी? ‘मैं’ का स्थान परिवर्तन ‘मैं चंदूभाई हूँ’ यह अहंकार है। 

क्योंकि जहाँ ‘मैं’ नहीं, वहाँ ‘मैं’ का आरोपण करना, उसी को अहंकार कहते हैं। 

प्रश्रकर्ता : ‘मैं चंदूभाई हूँ’ कहने में अहंकार कहाँ आया? ‘मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ’ ऐसा करे तो अलग बात है, लेकिन सहज रूप से कहें, उसमें अहंकार कहाँ आया?

गुरु जी : सहज भाव से बोले तो भी क्या अहंकार चला जाता है ? ‘मेरा नाम चंदूभाई है’ ऐसा सहज बोलने पर भी वह अहंकार ही है। क्योंकि आप ‘जो हो’ वह जानते नहीं हो और ‘जो नहीं हो’ उसका आरोपण करते हो, वह सब अहंकार ही है ! ‘आप चंदूभाई हो’ वह ड्रामेटिक चीज़ है। अर्थात ‘मैं चंदूभाई हूँ’ ऐसा बोलने में हर्ज़ नहीं है लेकिन ‘मैं चंदूभाई हूँ’ ऐसी धारणा नहीं होनी चाहिए। 

प्रश्रकर्ता : हाँ, ‘मैं’ पद आ गया।
गुरु जी : ‘मैं’ ‘मैं’ की जगह पर बैठे तो अहंकार नहीं है। ‘मैं’ मूल जगह पर नहीं है, आरोपित जगह पर है। इसलिए अहंकार है। ‘मैं’ आरोपित जगह से हट जाए और मूल जगह पर बैठ जाए तो अहंकार चला जाएगा। अर्थात ‘मैं’ को निकालना नहीं है, ‘मैं’ को उसके एक्ज़ेक्ट प्लेस (यथार्थ स्थान) पर रखना है।

‘स्वयं’ स्वयं से ही अन्जान?


यह तो अनंत जन्मों से, स्वयं, ‘स्वयं’ से गुप्त (अन्जान) रहने का प्रयत्न है। स्वयं, ‘स्वयं’ से गुप्त रहे और पराए का सबकुछ जाने, तो यह आश्चर्य ही है न! खुद, खुद से कितने समय तक गुप्त रहोगे? कब तक रहोगे ? ‘स्वयं कौन है’ इस पहचान के लिए ही यह जन्म है। 

मनुष्य जन्म इसीलिए है कि ‘स्वयं कौन हो’ उसकी खोज कर लें। नहीं तो, तब तक भटकते रहेंगे। ‘मैं कौन हूँ’ यह जानना पड़ेगा न? आप ‘खुद कौन हो’ यह जानना पड़ेगा या नहीं? 

‘I’ और ‘My’ को अलग करने का प्रयोग सेपरेट, 'I' & 'My' (अलग करो मैं’ और मेरा) 


आपसे कहा जाए कि, 'I'(मैं) and 'My'(मेरा) with separater भिन्न हैं, तो आप 'I'(मैं) और 'My'(मेरा) को Separate (अलग) कर सकेंगे क्या? 'I'(मैं) एन्ड 'My'(मेरा) को अलग करना चाहिए या नहीं? जगत् में कभी न कभी जानना तो पड़ेगा! 'I'(मैं) एन्ड 'My'(मेरा) अलग है। जैसे दूध के लिए सेपरेटर होता है, उसमें से मलाई सेपरेट (अलग) करते हैं ? उसी तरह इन्हें अलग करना है। आपके पास 'My'(मेरा) जैसी कोई चीज़ है? 'I'(मैं) अकेला है या साथ में है? 

प्रश्रकर्ता : 'My'(मेरा) साथ में होगा ! 
गुरु जी : क्या-क्या 'My'(मेरा) है आपके पास? 
प्रश्रकर्ता : मेरा घर और घर की सभी चीज़ें। 
गुरु जी : सभी आपकी कहलाती हैं? और वाइफ किसकी कहलाती हैं?
प्रश्रकर्ता : वह भी मेरी।
गुरु जी : और बच्चे किसके?

प्रश्रकर्ता : वे भी मेरे। 
गुरु जी : और यह घड़ी किसकी? 
प्रश्रकर्ता : वह भी मेरी। 
गुरु जी : और यह हाथ किसके? 
प्रश्रकर्ता : हाथ भी मेरे हैं। 

गुरु जी : फिर ‘मेरा सिर, मेरा शरीर, मेरे पैर, मेरे कान, मेरी आँखें’ ऐसा कहेंगे। इस शरीर की सारी चीज़ों को ‘मेरा’ कहते हैं, तब ‘मेरा’ कहने वाले ‘आप’ कौन हैं? यह नहीं सोचा? ‘'My' Name is  Chandubhai’ कहें और फिर कहें ‘मैं चंदूभाई हूँ’, इसमें कोई विरोधाभास नहीं लगता? 

प्रश्रकर्ता : लगता है।
गुरु जी : आप चंदूभाई हो, लेकिन इसमें 'I'(मैं) एन्ड 'My'(मेरा) दो हैं। यह 'I'(मैं) एन्ड 'My'(मेरा) की दो रेल्वेलाइन अलग ही हैं। पेरेलल ही रहती हैं, कभी एकाकार होती ही नहीं। फिर भी आप एकाकार मानते हो, तो समझकर इसमें से 'My'(मेरा) को Separate (अलग) कर दो। आपमें जो 'My'(मेरा) है,उसे एक ओर रख दो। 'My'(मेरा) हार्ट, तो उसे एक ओर रख दो। इस शरीर में से और क्या-क्या अलग करना होगा? 

प्रश्रकर्ता : पैर, इन्द्रियाँ। 
गुरु जी : हाँ, सभी। पाँच इन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ सभी। और फिर 'My'(मेरा) Mind’ कहते हैं कि ‛I am Mind’ कहते हैं।


प्रश्रकर्ता : 'My'(मेरा) Mind’ कहते हैं। 
गुरु जी : मेरी बुद्धि कहते हैं ? 
प्रश्रकर्ता : हाँ। 
गुरु जी : मेरा चित्त कहते हैं ?
प्रश्रकर्ता : हाँ। 
गुरु जी : और 'My'(मेरा) अहंकार’ बोलते हैं कि ‛I am अहंकार’ बोलते हैं?’ 

प्रश्रकर्ता : 'My'(मेरा) अहंकार। 

गुरु जी : 'My'(मेरा) अहंकार कहोगे तो उसे अलग कर सकोगे। लेकिन उसके आगे जो है, उसमें आपका हिस्सा क्या है, वह आप नहीं जानते।

इसलिए फिर पूर्ण रूप से परेशन नहीं हो पाता। आप, अपना कुछ हद तक ही जानते हो। आप स्थूल चीज़ें ही जानते हो, सूक्ष्म की पहचान ही नहीं है। सूक्ष्म को माइनस (-) करना, फिर सूक्ष्मतर को माइनस (-) करना, फिर सूक्ष्मतम को माइनस (-) करना तो ज्ञानीपुरुष का ही काम है। लेकिन एक-एक करके सारे स्पेयर पार्ट्स माइनस (-) करते जाएँ तो 'I' और माइ, दोनों अलग हो सकते हैं ? 'I' और 'My'(मेरा) दोनों अलग करने पर आखिर में क्या बचेगा? 'My'(मेरा) को एक ओर रख दें तो आखिर क्या बचा? 




प्रश्रकर्ता : 'I'(मैं)। 

गुरु जी : आप सिर्फ वह 'I'(मैं) ही हो। बस, उसी 'I'(मैं) को रियलाइज़ करना है। 

प्रश्रकर्ता : तो अलग करके यह समझना है कि जो बाकी बचा वह ‘मैं’ हूँ? 

गुरु जी : हाँ, अलग करने पर जो बाकी बचा, वह आप ‘स्वयं हो’, 'I'(मैं) आप खुद ही हो। उसका पता तो लगाना होगा? यह आसान रास्ता है ? 'I'(मैं) और 'My'(मेरा) अलग करें तो? 

प्रश्रकर्ता : वैसे रास्ता तो आसान है, लेकिन वो सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भी अलग हो तब न? वह बिना ज्ञानी के नहीं होगा ? 

गुरु जी : हाँ, वह ज्ञानीपुरुष बता देंगे। इसीलिए हम कहते हैं, अलग करें 'I'(मैं) and 'My'(मेरा) ज्ञानीज़ पुरूषों के साथ। उस ज्ञानीपुरुष को शास्त्रकार क्या कहते हैं? भेदज्ञान कहते हैं। बिना भेदज्ञान के आप कैसे अलग करेंगे? क्या-क्या चीज़ आपकी है और क्या-क्या आपकी नहीं है, इन दोनों का आपको भेदज्ञान नहीं है। 

भेदज्ञान यानी यह सब ‘मेरा’ है और ‘मैं’ अलग हूँ इनसे। इसलिए ज्ञानीपुरुष के पास, उनके सानिध्य में रहें तो भेदज्ञान प्राप्त हो जाए और फिर हमारा ('I'‘मैं’ और 'My'‘मेरा’) अलग हो जाएगा। 'I'(मैं) और 'My'(मेरा) का भेद करें तो बहुत आसान है? मैंने यह तरीका बताया, इसके अनुसार अध्यात्म सरल है या कठिन है? इस काल के जीवों का तो शास्त्र पढ़ते-पढ़ते दम निकल जाएगा। 

प्रश्रकर्ता : आप जैसों की ज़रूरत होगी , समझने के लिए ?

गुरु जी : हाँ, ज़रूरत होगी। लेकिन ज्ञानीपुरुष तो अधिक होते नहीं न! लेकिन जब कभी हों, तब हम अपना काम निकाल लें। ज्ञानीपुरुष का ‘अलग करने की कला’ ले लेना एकाध घंटे के लिए, उसका भाड़ा-वाड़ा (किराया) नहीं होता! जब 'I'(मैं) अलग होने पर सारा काम हो जाएगा।

सभी शास्त्रों का सार इतना ही है। आत्मा होना है तो 'My'(मेरा) सबकुछ समर्पित कर देना पड़ेगा। ज्ञानीपुरुष को 'My'(मेरा) सौंप दिया तो अकेला 'I'(मैं) आपके पास रहेगा। 'I'(मैं) with 'My'(मेरा) वही जीवात्मा कहलाता है। ‘मैं हूँ और यह सब मेरा है’ वह जीवात्म दशा और ‘सिर्फ मैं ही हूँ और यह मेरा नहीं’ वह परमात्म दशा

अर्थात 'My'(मेरा) की वजह से मोक्ष नहीं होता। ‘मैं कौन हूँ’ का ज्ञान होने पर 'My'(मेरा) छूट जाता है। 'My'(मेरा) छूट गया तो समझो सब छूट गया। आसान शब्दों 'My'(मेरा) इज़ रिलेटीव डिपार्टमेन्ट एन्ड 'I'(मैं) इज़ रियल। अर्थात 'I'(मैं) टेम्पररी नहीं होता, 'I'(मैं) इज़ परमानेन्ट। 'My'(मेरा) इज़ टेम्परेरी। यानी आपको 'I'(मैं) को ढूँढ निकालना है।

ज्ञानी ही पहचान करवाएँ ‘मैं’ की 

प्रश्रकर्ता : ‘मैं कौन हूँ’ यह जानने की जो बात है, वह इस संसार में रहकर कैसे संभव हो सकती है? 

गुरु जी : तब कहाँ रहकर जाना जा सकता है उसे? संसार के अलावा और कोई जगह है जहाँ रहा जा सकता है? इस जगत् में सभी संसारी ही हैं और सभी संसार में रहते हैं। यहीं पर ‘मैं कौन हूँ’ यह जानने को मिल सकता है। ‘आप कौन हो’ उसी को समझने का विज्ञान है यहाँ पर। 

यहाँ आना, हम आपसे पहचान करवा देंगे। और यह जितना भी हम आपसे पूछ रहे हैं, तो हम आपसे ऐसा नहीं कहते कि आप ऐसा करके लाओ। आपसे हो सके, ऐसा नहीं है। अत: हम आपसे क्या कहते हैं कि हम आपके लिए सब कर देंगे। इसलिए आपको चिंता नहीं करनी है। यह तो पहले समझ लेना है कि वास्तव में ‘हम’ क्या हैं और क्या जानने योग्य है? सही बात क्या है?

रेक्टनेस क्या है? वल्र्ड क्या है? यह सब क्या है? परमात्मा क्या हैं? 

परमात्मा हैं? परमात्मा हैं और वे आपके पास ही हैं। बाहर कहाँ ढूँढ रहे हो? लेकिन कोई यह दरवाज़ा खोल दे तो हम दर्शन कर पाएँगे न! यह दरवाज़ा इस तरह बंद हो गया है कि कभी भी खुद से खुल पाए, ऐसा है ही नहीं। वह तो जो खुद पार उतर चुके हैं, ऐसे तरणतारण ज्ञानीपुरुष का ही काम है।

स्वयं की भूलें खुद की ऊपर


भगवान तो आपका स्वरूप है। आपका कोई ऊपरी (बॉस, मालिक) है ही नहीं। कोई बाप भी ऊपरी नहीं है। आपको कोई कुछ करनेवाला है ही नहीं। आप स्वतंत्र हो, सिर्फ अपनी भूलों के कारण आप बंधे हुए हो। आपका कोई ऊपरी नहीं है और आप में किसी जीव का दखल (हस्तक्षेप) भी नहीं है। इतने सारे जीव हैं, लेकिन किसी जीव का आप में दखल नहीं है। और ये लोग जो कुछ दखल करते हैं, तो वह आपकी भूल की वजह से दखल करते हैं।

आपने जो पहले (पूर्व में) दखल की थी, यह उसी का फल है। यह मैं स्वयं ‘देखकर’ बता रहा हूँ। हम इन दो वाक्यों में गारन्टी देते हैं, इससे मनुष्य मुक्त रह सकता है। हम क्या कहते हैं कि, ‘तेरा ऊपरी दुनिया में कोई नहीं। तेरे ऊपरी तेरे मूर्खता और तेरी भूल हैं। ये दो नहीं हों तो तू परमात्मा ही है।’ और ‘तेरे में किसी की ज़रा भी दखल नहीं है। कोई जीव ऐसी स्थिति में है ही नहीं कि किसी जीव में किंचित्मात्र भी दखल कर सके, ऐसा है यह जगत्।’ ये दो वाक्य सब समाधान ला देते हैं।


आशा करता हूँ कि यह article पढने के बाद आपको समझ मे आ गया होगा। और स्वयं को बदलने की चाह बढ गई होगी। अगर आपको हमारे ब्लॉग से लाभ मिलता है तो इसे दूसरो को भी शेयर जरूर करें ।जिससे अन्य नये लोगों को भी इससे फायदा हो।

अगर आपका कोई प्रश्न हो तो आप Comment Box मे लिख सकते है। हम आपके प्रश्न का उत्तर जरूर देंगे। हमें आपके प्रश्न का उत्तर देने मे बहुत खुशी होगी।

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